उत्तराखण्ड

धराली आपदा के ज़ख़्म अभी भरे नहीं कि थराली में कहर!, क्या है इसकी वजह?, दिखा ये सेम पैटर्न

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उत्तराखंड में इस बार का मानसून लगातार तबाही का सबब बना हुआ है। धराली आपदा के ज़ख़्म अभी भरे भी नहीं थे कि शुक्रवार रात चमोली के थराली में बरसात ने नया कहर ढा दिया। थराली में बारिश से 40 दुकानें और 20 मकान क्षतिग्रस्त हो गए। इस हादसे में एक युवती की मौत हो गई और एक बुज़ुर्ग का अब तक कोई पता नहीं चल सका है।
शुरुआती रिपोर्ट्स में इस आपदा को बादल फटने से जोड़कर देखा जा रहा था।

धराली आपदा के ज़ख़्म अभी भरे नहीं कि थराली में कहर!

हालांकि इसी बीच वाडिया, जलागम, आईआईजी, दून विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का एक बड़ा शोध सामने आया है। जिसमें वैज्ञानिकों ने चेताया की उत्तराखंड बादल फटने की चरम घटनाओं का हॉटस्पॉट बन चुका है।

1982 से 2020 तक के आंकड़ों पर आधारित इस शोध से सामने आया है कि राज्य में बारिश, Surface Temperature और जल प्रवाह में लगातार और बड़े बदलाव हो रहे हैं। पिछले चार दशकों में बारिश और जल प्रवाह का पैटर्न किस तरह बदलता गया है।

कई सालों से बादल फटने के मामलों में तेजी!

  • 2010 के बाद से बादल फटने जैसी चरम मौसम घटनाओं में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है।
  • पूर्वी उत्तराखंड (नैनीताल, ऊधमसिंह नगर) में 1990 के दशक में बारिश बढ़ी, जबकि 2000 में पश्चिमी जिलों (जैसे बागेश्वर) में बारिश कम हो गई।
  • 2010 में पश्चिमी ज़िलों में फिर बारिश बढ़ी और 2020 आते-आते यह ट्रेंड उलटकर फिर पूर्वी इलाक़ों में ज्यादा बारिश की तरफ़ शिफ्ट हो गया
  • रुड़की और तराई क्षेत्र में 1990 में जल प्रवाह ज्यादा था, लेकिन 2000 तक इसमें गिरावट आई। यही पैटर्न 2010 और 2020 में दोबारा देखा गया।

तेजी से बनते है बादल

विशेषज्ञों की मानें तो ये बरसात और बर्फ़बारी से जुड़ी नमी की मात्रा से प्रभावित है। मौसम विभाग के पूर्व निदेशक बिक्रम सिंह और वैज्ञानिक रोहित थपलियाल बताते हैं कि अरब सागर से आने वाली दक्षिण-पश्चिमी हवाएं, राजस्थान और हरियाणा से गुज़रते हुए जब हिमालय की पहाड़ियों से टकराती हैं तो अचानक ऊपर उठ जाती हैं। नतीजतन बादल तेजी से बनते हैं और फटने जैसी घटनाएं होती हैं।

सुबह होते है ऐसे हादसे

मौसम विभाग के पूर्व निदेशक बिक्रम सिंह के मुताबिक, उत्तराखंड में ऐसे हादसे ज़्यादातर तड़के सुबह होते हैं। रात में वातावरण ठंडा होने से तापमान ओसांक यानी (dew point) तक पहुंच जाता है। जिससे बादल बनने की संभावना बढ़ जाती है। बता दें की जब हवा में मौजूद नमी ठंडी होकर पानी की बूंदों में बदल जाती है तो जिस तापमान पर ये प्रक्रिया होती है उसे Dew Point कहते हैं।

नार्मल से ज्यादा हो गई है बरसात

वैज्ञानिकों की मानें तो इस साल सिर्फ 23 अगस्त तक ही राज्य में 1031 मिमी बारिश दर्ज हो चुकी है। वैसे नार्मली इस समय तक पूरे राज्य में औसतन 904.2 मिमी बारिश होती है। जिससे ये साफ है की राज्य में अब तक 14 प्रतिश्त ज्यादा बारीश हो चुकी है। और हो सकता है की इस साल मानसून के खत्म होने तक राज्य में और ज्यादा बरसात दर्ज हो।

धराली से लेकर थराली तक एक ही पैटर्न!

वहीं वैज्ञानिकों का मानना है कि उत्तराखंड में असली तबाही बादल फटने से नहीं बल्कि नदी-नालों में जमा मलबे से हो रही है। धराली से लेकर थराली तक एक ही पैटर्न दिखाई दे रहा है। जहां बारिश के साथ बहकर आया मलबा नदी नालों में जमा हुआ। फिर सैलाब की शक्ल में नीचे की ओर बह निकला। जिससे तबाही आई ।

थराली में

  • 6.45-7.45 तक 1 घंटे में 38 मिमी बारिश हुई
  • फिर 11 से 12:15 तक 36 मिमी बरसात हुई
  • शुक्रवार सुबह 8:30 से शनिवार सुबह 3:45 तक कुल 147 मिमी बारिश हुई।
  • चमोली जिले में 24 घंटे में सामान्यतः 6.9 मिमी बारिश होती है। लेकिन इस बार ये आंकड़ा 17.7 मिमी पहुंच गया यानी 157% अधिक।

यानी साफ है, उत्तराखंड में तबाही का सिलसिला सिर्फ बादल फटने तक सीमित नहीं है। असल ख़तरा बारिश के बाद बहता मलबा और बदलता मौसम का पैटर्न भी है। यही वजह है कि वैज्ञानिक अब लगातार नदी-नालों और गदेरों की मॉनिटरिंग पर ज़ोर दे रहे हैं

News100Live Desk
टीम न्यूज़ 100 लाइव