उत्तराखण्ड

Climate change : जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध संवैधानिक अधिकार पर दून में हुई चर्चा

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“जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध संवैधानिक अधिकार” पर एक पैनल चर्चा को देहरादून स्थित दून लाइब्रेरी और रिसर्च सेंटर में आयोजित की गई। ये चर्चा ‘उत्तराखंड आइडिया एक्सचेंज ऑन क्लाइमेट एंड कॉन्स्टिट्यूशन’ के हिस्से के रूप में आयोजित की गई।


देहरादून में जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध संवैधानिक अधिकार पर चर्चा की गई। कार्यक्रम में विशेषज्ञों के साथ ही देहरादून के कई विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राओं ने भी भाग लिया। इस चर्चा में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने एमके रंजीत सिंह बनाम भारत संघ (2024) के सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ नागरिकों के मौलिक अधिकारों की मान्यता पर विचार-विमर्श किया गया।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बताया सकारात्मक कदम
चर्चा की शुरूआत सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2021 में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संदर्भ में दी गई ट्रांसमिशन लाइनों को भूमिगत करने के आदेश से हुई। इसके बाद इसी साल 2024 में दिए गए एमके रंजीत सिंह बनाम भारत संघ के निर्णय पर चर्चा की गई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा जलवायु परिवर्तन को एक संवैधानिक मुद्दा मानने और इसके पर्यावरणीय अधिकारों पर प्रभावों पर चर्चा की गई।

उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कानूनी सलाहकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय के कानूनी आयामों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कोई नया अधिकार नहीं बनाया। बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत पहले से मौजूद अधिकार को मान्यता दी। उन्होंने भारत में जलवायु से जुड़े मुकदमों के लिए इसे एक सकारात्मक कदम बताया। इसके साथ ही इस अधिकार को लागू करने में राज्य के सामने आने वाली चुनौतियों पर भी चर्चा की गई।

जलवायु परिवर्तन और मानसिक स्वास्थ्य पर भी हुई चर्चा
वरिष्ठ पत्रकार वर्षा सिंह ने जलवायु परिवर्तन के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों पर विशेष रूप से स्कूली बच्चों के संदर्भ में बात की। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के लैंगिक प्रभावों पर भी प्रकाश डाला। जिसमें बताया गया कि महिलाएं विशेष रूप से इससे प्रभावित होती हैं। अपने जमीनी रिपोर्टिंग के अनुभव साझा करते हुए उन्होंने मीडिया की भूमिका पर जोर दिया और बताया कि कैसे मीडिया पर्यावरणीय अधिकारों की जानकारी को आम जनता तक पहुँचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।