नैनीताल के नंदा देवी मेले को राजकीय मेला घोषित कर दिया गया है। कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने ये घोषणा करते हुए कहा कि इसके लिए प्रभावी पहल करने के साथ ही मेले को और भी ज्यादा भव्य बनाने के प्रयास किए जाएंगे। इसके साथ ही उन्होंने जिले को 14 करोड़ 77 लाख की 10 विकास योजनाओं का तोहफा भी दिया है। आपको बता दें कि नैनीताल के नंदा देवी मेले को राजकीय मेला घोषित करने की बहुत पहले से ही मांग उठ रही थी।
माना जाता है कि मेले की शुरूआत 16 वीं शताब्दी में राजा कल्याण चंद के शासनकाल में कुमाऊं क्षेत्र में हुई थी। तब से लेकर अब तक पूरे कुमाऊं के नंदा देवी मंदिरों में मेले का आयोजन किया जाता है। बता दें कि ये मेला एक सप्ताह तक चलता है।
माना जाता है कि नैनीताल में होने वाला नंदा देवी मेला अल्मोड़ा से ही आया है। ऐसा कहा जाता है कि अल्मोड़ा से नैनीताल आकर बसे लोगों ने ही यहां इसकी शुरुआत की थी। नैनीताल के नंदादेवी महोत्सव के बारे में कहा जाता है कि 1903 में यहाँ पर मोतीराम साह के द्वारा नन्दाष्टमी के मौके पर भव्य महोत्सव का आयोजन शुरू करवाया गया था। यहीं कारण भी है कि अल्मोड़ा के नंदा देवी महोत्सव और नैनीताल के नंदा देवी महोत्सव में काफी समानताएं हैं।
नंदा देवी को पूरे कुमाऊं की कुल देवी माना जाता है। जिस कारण पूरे कुमाऊं में नंदा देवी महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। इस मेले की शुरूआत गणेश पूजन के साथ होती है इसके साथ ही एक दल ढोल बाजों के साथ कदली वृक्ष लेने के लिए निकलता है और कदली वृक्ष का चयन किया जाता है।
दूसरे दिन धूमधाम से कदली वृक्ष (केले का पेड़) लाया जाता है। जिसके बाद षष्ठमी के दिन इसके तनों की पूजा अर्चना के बाद इस से मां नंदा और सुनंदा की मूर्तियां बनाई जाती हैं। अष्टमी को वस्त्र पहनाकर और श्रृंगार कर इन मूर्तियों को मंदिर में स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है।
स्थापना के बाद मां की भक्तों द्वारा स्तुति की जाती है। नवमी के दिन कन्याकुमारियों की पूजा की जाती है। दशमी के दिन पूरे शहर में माँ नंदा के डोले के साथ विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है। जिसके बाद इसका विसर्जन कर दिया जाता है।