

कवि इस कविता के माध्यम से मुख्य रूप से यह कहना चाहते हैं कि आज के युग में बेटियां गलत राह पर जा रही हैं, खासकर फैशन और दिखावे के चक्कर में अपनी पहचान और मूल्यों को खो रही हैं। वे बिना सोचे-समझे, खासकर शादी जैसे महत्वपूर्ण फैसले लेकर अपने माता-पिता की चिंता बढ़ा रही हैं और अपने जीवन को बर्बाद कर रही हैं। कवि उनसे आग्रह करते हैं कि वे समय रहते सुधर जाएं, समझदारी से निर्णय लें और ऐसे जीवनसाथी को चुनें जो सरकारी नौकरी से ज्यादा इज्जत और परिवार से प्रेम को महत्व दे, ताकि वे अपने और अपने माता-पिता के सपनों को साकार कर सकें और परिवार की इज्जत बनी रहे।
इस कविता से हमें यह हंसी मिली कि हमें जल्दबाजी में निर्णय नहीं लेने चाहिए, विशेषकर विवाह जैसे महत्वपूर्ण मामलों में। बाहरी दिखावे और फैशन के बजाय, हमें अपने मूल्यों और संस्कारों को महत्व देना चाहिए। यह भी सीख मिलती है कि माता-पिता की सलाह का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि उनकी चिंताएं हमारे भले के लिए होती हैं। अंततः, जीवन में इज्जत और पारिवारिक प्रेम भौतिक सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं।
🌸 कविता: “हमारी बेटी, हमारी चिंता”
यह कैसा युग आया हे, बेटियों के लिए,
जहाँ सपनों की उड़ान, बिना पंखों के हो रही हे।
फैशन की चकाचौंध में, खो ली अपनी पहचान,
मूल्यों की मिठास, अब लगती है इस को अनजान।
माँ-बाप की चिंता, अब समझ में नहीं आती,
बेटी के निर्णयों में, उनकी सलाह नहीं समा पाती।
ना व्यवसाय देखा, ना आय का किया विचार,
सिर्फ दिखावे में, खो दिया यह संसार।
सूखी रोटी खाकर, जीवन किया नष्ट ,
मूल्यवान समय को, व्यर्थ ही गंवा दिया।
ना माँ-बाप को बताया, ना रिश्तेदारों को,
अपने अरमानों की बगिया में, खुद ही आग लगाया।
शादी के दो महीने भी नहीं बीते हे,
कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगने शुरू हो गए।
जीवन साथी से पीछा नहीं छूटा,
समाज के तानों से मन बिखर गया।
चार दिन की जिंदगी, दो दिन में नष्ट हो गई,
माँ-बाप की इज्जत, खुद ही की धृष्ट।
सुधर जाओ बेटी, समय है अभी,
जीवन साथी को सोच-समझ कर चुनो सभी।
सरकारी नौकरी नहीं, इज्जत होनी चाहिए,
नशे से नहीं, परिवार से प्रेम होना चाहिए।
सुधर जाओ बेटी, नई राह अपनाओ,
अपने माँ-बाप के सपनों को साकार बनाओ।
कवि: गोकुलानन्द जोशी
पता: करास माफी जनौटी पालड़ी
काफ़लीगर बागेश्वर
वर्तमान पता: पश्चिमी राजीव नगर, घोड़ानाला, बिन्दुखत्ता, लालकुआं, नैनीताल
