



नीचे दी गई कविता के माध्यम से, कवि यह कहना चाहते हैं कि पहाड़ की युवतियों का तराई क्षेत्र (भाभर) में शादी करने के लिए पलायन दुखद है और यह पहाड़ी संस्कृति, प्राकृतिक सौंदर्य और सामाजिक मूल्यों की उपेक्षा है। वह युवाओं से अपनी जड़ों को न छोड़ने और पहाड़ में ही अपना जीवन बसाने का आग्रह करते हैं, ताकि पहाड़ खाली न हों और उनकी पहचान बनी रहे।
इस कविता से हमें यह सीख मिल रही है -: यह कविता हमें अपनी संस्कृति और जड़ों से जुड़े रहने, पलायन के नकारात्मक प्रभावों को समझने, बाहरी आकर्षणों से सावधान रहने, पारिवारिक मूल्यों का सम्मान करने और अपने समुदाय के प्रति जिम्मेदार होने की सीख देती है। यह हमें अपने क्षेत्रों के विकास के लिए सोचने और कार्य करने के लिए भी प्रेरित करती है।
भाभर में डेरा क्यों ना होगा फेरा
जब तक भाभर में नहीं होगा डेरा
तब तक नहीं होगा फेरा
यह कैसी बात कह डाली आज की लड़की ने
पहाड़ में पढ़ा है पहाड़ की निवासी हूं कहती है वह बेटी
क्यों नहीं अपने पहाड़ को बढ़ावा देती है वह बेटी
भाभर में ऐसा क्या रखा है
पूछना चाहता हूं उन बेटियों से
चार लोगों के सामने अपने आप की इज्जत बढ़ाने लिए
पहाड़ से पलायन करके क्योंजा रही हो बेटी
पहाड़ का मीठा पानी
पहाड़ का ठंडा पानी
छोड़कर उस भाभर की ओर क्यों जा रही हो बेटी
पहाड़ भी रो रहे हैं बेटी
क्यों रुला के जा रही है मेरी प्यारी बेटी
मम्मी पापा भी विदाई के वक्त रो रहे हैं
यह आंसू उनके मेरी बेटी की विदाई के नहीं मेरी बेटी के भाभर जाने के हैं
ऐसा कौन सा पहाड़ टूट पड़ा है
क्यों तुम उनसे इतना रूठे हुए है
एक बार अवश्य बतला मेरी बेटी
पहाड़ में क्यों नहीं करनी तूने शादी
हंसते-हंसते मैं तुझे विदा करूंगा
अगर तूने इसका जवाब मुझे दे दिया
जब तक भाभर में नहीं होगा डेरा
तब तक नहीं होगा फेरा
यह कैसी रट है तेरी बेटी
छोड़ दे इस रट को मेरी बेटी
कर ले तू शादी जी ले अपनी जिंदगी
मत तरसा इन पहाड़ के लड़कों को इतना
मत रुला इतना इनको इतना
की यह नेपाल से लेकर आए तेरी भौजी को
मत तरसा मेरी बेटी मत तरसाए इनको
छोड़ दे अपनी इस रट को
पहाड़ में बसा ले अपनी दुनिया को
कवि गोकुलानन्द जोशी
पता – करासमाफ़ी काफलीगैर बागेश्वर
वर्तमान पता -बिंदुखत्ता लालकुआं नैनीताल