उत्तराखण्ड

Independence Day : उत्तराखंड के पहले स्वतंत्रता सेनानी कालू महरा, जिनकी मौत आज तक है राज

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सन 1857 में देशभर में पहला स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा हुआ था लेकिन कुमाऊं में अभी इसका इतना असर नहीं था। यहां के आंदोलनकारियों की अगुवाई में चंपावत क्षेत्र में इतना विरोध हुआ की चंपावत को अंग्रेजी सरकार ने बगावती इलाका घोषित कर दिया। यहां तक इस क्षेत्र से सेना की भर्ती तक नहीं करवाई गई। कुमाऊं के इस चंपावत क्षेत्र में बगावत का झंडा लिए सबसे आगे खड़े थे कालू महरा। कालू महरा कुमाऊं समेत उत्तराखंड के पहले स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने देश के लिए अपना बलिदान दे दिया।

उत्तराखंड के पहले स्वतंत्रता सेनानी कालू महरा

जब अंग्रेजों ने उत्तराखंड के कई भू-भागों को गोरखाओं से छीनकर उन पर कब्जा कर लिया था। कुमाऊं और गढ़वाल के आधे-आधे हिस्से मिलाकर कुमाऊं कमिश्नरी बन चुके थे और जो गढ़वाल के हिस्से बचे थे उनको अंग्रेजों ने टिहरी के राजा सुदर्शन शाह को सौंप दिया था। इसी दौरान देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया। वैसे तो पहाड़ों में इसका कोई व्यापक असर नहीं था लेकिन यहां कुछ स्वतंत्रता सेनानी ऐसे भी थे जिन्होंने पहाड़ों की इन वादियों में अंग्रेजों के विरोध की ऐसी चिंगारी लगाई जिसकी लपटें समय के साथ बढ़ती चली गई जिसमें सबसे बड़ा हाथ कालू महरा का था।

युवा अवस्था में ही कालू महरा ने अंग्रेजों के खिलाफ छेड़ दी थी जंग

कालू महरा का जन्म चम्पावत के थुआमहरा गांव में सन 1832 में हुआ था। अपनी युवा अवस्था में ही कालू महरा ने अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ दी थी। अब तक उन्होंने कुमाऊं में अपना एक सैन्य संगठन भी तैयार कर लिया था। उनके इस संगठन में चौड़पित्ता के बोरा, रैघों के बैडवाल, रौलमेल के लडवाल, चको के क्काल, धौनी, मौनी, करायत, देव, बोरा और फर्तयाल शामिल थे। इसके अलावा रुहेलखण्ड के नवाब खान बहादुर खान, टिहरी के नरेश और अवध नरेश ने भी अंग्रेजों के खिलाफ इस जंग में कालू महरा का साथ देने का वादा किया था।

15 AUGUST
कालू महरा

कुमाऊं के लोग ऐसे क्रांति में हुए थे शामिल

कहा जाता है कि उस समय कालू मेहर को वाजिद अली शाह ने एक पत्र लिखा था इसका संदर्भ देते हुए बद्रीदत्त पांडे अपनी किताब कुमाऊं का इतिहास में लिखते हैं – वाजिद अली ने इस पत्र में लिखा था कि कुमाऊं के लोग क्रांति में सम्मिलित होंगे तो उन्हें जितना धन मांगेंगे दिया जाएगा। कुमाऊं प्रदेश पर कुमाऊं के लोगों का शासन रहेगा और मैदानी प्रदेश में नवाब का शासन रहेगा।

लेकिन कुछ इतिहासकार इस पत्र वाली बात का खंडन भी करते हैं प्रभात उप्रेती स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्मारिका में लिखते हैं
की ये किस्सा कयास भर है वाजिद अलिशाह उस समय खुद अंग्रेजों की कैद में था। उसकी ऐसी सोच भी न थी और अंग्रेजों की इतनी तगड़ी जासूसी में इतने दूरस्थ पहाड़ में कोई पत्र आना असंभव था।

क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की बैरेंकों को कर दिया था आग के हवाले

बद्रीदत्त पांडे के अनुसार वाजिदअली का ये पत्र पढ़कर कालू महरा ने गुप्त मंत्रणा कर ये सुझाव दिया कि कुछ लोग जाकर नवाब की तरफ हो जाएं और कुछ अंग्रेजों की तरफ फिर जो भी धनराशि हमें मिलेगी उसे सभी लोग आपस में बांट लेंगे। इस प्लान के तहत कालू महर, आनंद सिंह फ़र्त्याल और विशन सिंह करायत लखनऊ में नवाब से मिलने चले गए और माधो सिंह फ़र्त्याल, नर सिंह लटवाल और खुशहाल सिंह अंग्रेजों के पक्ष में हो गए।

इसके बाद कालू महरा ने जो क्रांतिकारी संगठन बनाया था उन्होंने उसके साथ मिलकर सबसे पहले लोहाघाट के चांदमारी में स्थित अंग्रेजों की बैरेंकों पर हमला किया। ये हमला अंग्रेजों के लिए अप्रत्याशित था अंग्रेज अधिकारी हमले के दौरान वहां से भाग गए और इन क्रांतिकारियों ने उन बैरेंकों को आग के हवाले कर दिया।

15 AUGUST
कालू महरा चौक लोहाघाट

ऐसे अंग्रेजों ने उन्हें किया था गिरफ्तार

ये कालू महरा की पहली लड़ाई थी इस लड़ाई में कामयाब होने के बाद कालू महरा और उनके साथी बस्तियों की तरफ बढ़े जहां इन्होंने अमोड़ी के पास कैराला नदी के किनारे बसे किरमौली गांव में अपने हथियार और कुछ पैसे छिपाए। संगठन की योजना थी कि पैसे और हथियार लेकर वो यहां से आगे बढ़ेंगे पर अंग्रेजों के किसी मुखबिर ने ये खबर अंग्रेजी सैनिकों तक पहुंचा दी।

फिर क्या था अंग्रेजों ने वहां जाकर क्रांतिकारियों का ये प्लान रद्द कर दिया। सारे क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया।
अब इस बात को लेकर आज इतिहासकारों में मतभेद हैं कुछ मानते हैं की उन्हें और उनके साथियों को तब ही गोली मार दी गई। जबकि कुछ कहते हैं कि उन्हें अलग अलग जेलों में रखा गया और बाद में फांसी दे दी गई।

15 AUGUST
डाक विभाग ने कालू महरा के नाम से जारी किया विशेष लिफाफा

आज तक कालू महरा की मौत है एक राज

कुछ इतिहासकारों का कहना है की कालू महर ने नेपाल पलायन कर लिया। कहा जाता है उनके घर को पटवारियों ने जला दिया
अब इसकी असल सच्चाई क्या है ये कोई नहीं जानता कालू महर की मौत आज भी एक गुत्थी है। लेकिन देश की आजादी के लिए कालू महरा की ये शहादत कुमाऊं की तरफ से पहली शहादत थी।

कालू महरा के सम्मान में साल 2010 में लोहाघाट चौराहे को उनका नाम दे दिया गया। इसके साथ ही साल 2021 में आजादी के अमृत महोत्सव के उपल्क्ष्य में डाक विभाग ने उनको याद करते हुए एक विशेष लिफाफा भी जारी किया।

News100Live Desk
टीम न्यूज़ 100 लाइव