उत्तराखण्ड

जल्द खत्म हो जाएंगे पहाड़ी राज्य!, उत्तराखंड और हिमाचल में मंडरा रहा खतरा

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हाल ही में हिमाचल में इस मॉनसून कई बादल फटने की घटना सामने आई। इसके साथ ही उत्तराखंड में भी लगातार बाढ़ों का आना और भूधंसाव के मामले सामने आए। आखिर इन सब के पीछ की वजह क्या है? कहा जाने लगा है कि ऐसे ही चलता रहा तो हिमालयी राज्य खत्म हो जाएंगे। तो क्या सच में हिमालयी राज्य अब खत्म होने वाले हैं? चलिए इस आर्टिकल में इन सभी चीजों को समझते है।

पहाड़ी इलाकों में बादल फटने के मामलों में तेजी

बीते कुछ सालों से हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इलाकों में बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। मंडी, कुल्लू, चंबा, और रुद्रप्रयाग जैसे इलाकों में भारी बारिश, भूस्खलन, और बाढ़ ने लोगों की जिंदगी मुश्किल में डाल दी है। जिसके बाद सवाल खड़े हो रहे है कि आखिर इन हिमालयी राज्यों में ऐसा क्या हो रहा है? जिससे आए दिन यहां आपदाएं जन्म ले रही हैं। खासकर बादल फटने की घटना। इसके लिए सबसे पहले ये समझ लेते हैं कि आखिर बादल फटता क्यों है ?

बादल फटता क्यों है ?

दरअसल जब बहुत सारी नमी से भरी हवाएं किसी ठंडे इलाके में पहुंचती हैं तो वो तेजी से ऊपर उठती हैं। ये प्रक्रिया हिमालय जैसे ऊंचे पहाड़ों में और तेज हो जाती है। ऊपर पहुंचकर ये नमी बादल बनती है और जब इन बादलों में बहुत सारा पानी जमा हो जाता है तो ये अचानक से फट जाते हैं। वैज्ञानिक इसे Local Convective Storm कहते हैं।

क्या है बादल फटने की वजह?

हिमालयी राज्यों में बादल फटने की सबसे बड़ी वजह है GLOBAL WARMING। वैज्ञानिकों की मानें तो धरती का तापमान बढ़ने से Atmosphere में नमी बढ़ रही है। गर्म हवा ज्यादा पानी सोख सकती है और जब ये नमी ठंडी हवाओं से मिलती है तो बादल फटने के साथ तेज बारिश होती है।

शोध बताते हैं कि हर 1°C तापमान बढ़ने से वायुमंडल में 7% प्रतिशत ज्यादा नमी जमा हो सकती है। हिमालय की ऊंची चोटियां और संकरी घाटियां बादल फटने के लिए एकदम सही कंडीशन बनाती भी हैं। इसे वैज्ञानिक भाषा में OROGRAPHIC LIFT कहते हैं।

भारी बारिश बन रही राज्यों के लिए खतरा

मॉनसून के दौरान बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से आने वाली नम हवाएं हिमालय की चोटियों से टकराती हैं। ये हवाएं ऊपर की ओर उठती हैं, ठंडी होती हैं, और बादल बनाती हैं। जब ये बादल बहुत ज्यादा नमी जमा कर लेते हैं तो वो एकदम से फट पड़ते हैं।

यही वजह है कि इस साल हिमाचल में जून में सामान्य से 34% ज्यादा बारिश हुई। पूरे मॉनसून सीजन में छप्पन प्रतिशत 56% ज्यादा बारिश दर्ज की गई। ये चरम मौसमी घटनाएं GLOBAL WARMING का नतीजा हैं।

डेवलेपमेंट एक बड़ा कारण

ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से मॉनसून का पैटर्न भी चेंज हो रहा है। मॉनसून के दौरान low pressure area हिमालय के Foothills की ओर शिफ्ट हो रहा है। इससे भारी बारिश और बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं। खासकर July और August में जब मॉनसून अपने पीक पर होता है, हिमालयी इलाकों में ऐसी घटनाएं ज्यादा देखी जाती हैं। हिमालयी राज्यों में बढ़ रही इन आपदाओं को हमारी गतिविधियां और भी गंभीर बना रही हैं। हिमालयी राज्यों में जंगलों को तेजी से काटा जा रहा है, ताकि सड़कें, होटल, और बांध बनाए जा सकें। जंगल मिट्टी को स्थिर रखते हैं और नमी को नियंत्रित करते हैं।

ग्लोबल वार्मिंग आए दिन नए नए खतरों को दे रही जन्म

जब जंगल काटे जाते हैं तो मिट्टी ढीली हो जाती है और भूस्खलन का खतरा बढ़ता है। बादल फटने के बाद ये भूस्खलन और बाढ़ आपदा को और खतरनाक बना देते हैं। इसके अलावा लगातार कूड़ा डंपिंग जोन में कूड़े को रिसाइकिल करने की जगह जो आग सुलगा दी जाती है। इससे Carbon Dioxide और Black Carbon जैसी गैसें निकलती हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाती हैं।

ब्लैक कार्बन हिमालय के ग्लेशियरों पर जमता है जिससे वो तेजी से पिघलते हैं। ये पिघलन water cycle को बिगाड़ता है। जिससे बादल फटने की घटनाएं बढ़ती हैं। यही नहीं ग्लोबल वार्मिंग आए दिन नए नए खतरों को जन्म दे रही है। ग्लोबल वार्मिंग का सबसे स्पष्ट प्रभाव ग्लेशियरों के पिघलने पर देखा जा रहा है। हिमालयी ग्लेशियर, जैसे गंगोत्री और यमुनोत्री, पिछले कुछ दशकों में काफी पीछे हट चुके हैं।

उत्तराखंड के जोशीमठ से हो गई शुरूआत!

जिसकी वजह से हिमालय में कई ग्लेशियल झीलें बन गई हैं और ये किस हद तक नुकसान कर सकती हैं इस बारे में हमने इस विडियो में बताया है तो आई बटन या डिस्क्रिप्शन पर किलीक करके आप ये विडियो देख सकेत हैं। GLOBAL WARMING से आने वाले वक्त में पहाड़ों को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है और हो सकता है की बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग की वजह से आने वाले वक्त में ये हिमालयी राज्य पूरी तरह से खत्म हो जाएं जिसकी शुरुआत शायद उत्तराखंड के जोशीमठ से हो गई है

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News100Live Desk
टीम न्यूज़ 100 लाइव